

महेश भादानी. बीकानेर। बीकानेर राजघराने और ढड्ढा की गवर के बाद सबसे अधिक प्रसिद्ध भादाणी/ बच्छावत की गवरजा है। इन तीनों गवरों के आगे सब तीजणियां धोक लगाती है। यह भी एक संयोग है कि तीनों गवर जोधपुर और जैसलमेर से लाई गई है। जैसलमेर राजघराने के ईशर बीकानेर वालों ने जीते थे। सोलहवीं शताब्दी में बीकानेर रियासत के दीवान करम सिंह जी बच्छावत थे। उनके परिवार की गवरा बहुत ही सुंदर होने की सूचना राजा तक पहुंच गई। इसलिए उन्होंने अपने सैनिकों को आदेश दे दिया कि जब भी राजमहल में बच्छावत की गवर आए तो उसको लूट लिया जाए।
इस बात की भनक जब दीवान बच्छावत को लगी तो उन्होंने खोल भराई के बाद गवर को राजमहल से सुरक्षित वापस लाने का कार्य पुरोहित भादो जी भादाणी को दिया खोल भराई से लौटते वक़्त हुए हमले में बच्छावतों की गवर को बचाने का कार्य भादाणी जी ने बखूबी अंजाम दिया। इस दौरान तीन लोगों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी।तब से लेकर आज तक इस गवर की रक्षा भादाणी परिवार ही करता आया है।
आज भी जारी है परंपरा
आज शताब्दियों बाद भी ये गवर खोल भराई के लिए चौतीना कुआँ में जाती है और आज भी किले के सैनिक जब दूर से आते दिखते हैं तो ये भादाणी परिवार के लोग गवर को लेके भागने लगते है। भादाणी परिवार जिस तरह से इस परंपरा का निर्वहन कर रहा है। वह अपने आप में अद्भुत है और आज तक दीवान करम सिंह बच्छावत को दिए वादे को निभाने की प्रथा चली आ रही है। अपने वचन का मान रखने की परंपरा आज भी भादाणी परिवार शिद्दत से निभा रहे हैं।