बीकानेर। हार और जीत जीवन के वह पहलू है जिनसे सबक लिया जाता है। जीत में भी सबक और हार में भी सबक। जीत में सबक इस बात का कि और बेहतर कैसे हो सकते हैं और इसे कायम कैसे रख सकते हैं। वहीं हार के बाद कमियों, खामियों को चिन्हित करने और इनमें सुधार करने की तत्परता दिखनी चाहिए।
दिखना चाहिए बदलाव
आजाद भारत में राजनीतिक रूप से बात की जाए तो कांग्रेस पिछले 10 सालों में संघर्ष के दौर में गुजर रही है। दो लोकसभा चुनावों के साथ ही देश के अधिकांश राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन कांग्रेस के मुकाबले हर दिन बेहतर होता गया या यूं कहें कि कांग्रेस का प्रदर्शन हर दिन गिरावट में दर्ज होता गया। 10 सालों में सबसे महत्वपूर्ण बात जो कि राजनीतिक व्यक्ति और राजनीतिक पार्टी के लिए एक जरूरी सबक के रूप में तत्काल लिया जाना चाहिए वह कांग्रेस में नजर नहीं आ रहा है। किसी परीक्षा में बैठने वाला अभ्यर्थी भी कम नंबर आने और फेल होने पर विवेचन करता है और अगली बार उन गलतियों को नहीं दोहराने के लिए तैयारी करता है तो निश्चित रूप से वह अगली बार टॉपर की श्रेणी में जरूर शामिल होता है। लेकिन राजनीतिक पार्टी के तौर पर कांग्रेस में ऐसा नजर नहीं आ रहा है। हर बार के बाद समीक्षा के नाम पर कांग्रेस में बैठक के फोटो वीडियो जरूर सामने आते हैं लेकिन कोई ऐसा निर्णय नहीं नजर नहीं आता। जो पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी इस बात का भरोसा दिलाए कि नहीं अब सब कुछ सही होने के लिए किया जा रहा है। ऐसे में जब पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं को ही इस बात का भरोसा नहीं होगा तो आम जनता में भरोसा होने का तो सवाल ही नहीं होता।
कायम करना होगा अनुशासन
कांग्रेस पार्टी को अपने अंदर से लीकेज को रोक कर अनुशासन कायम करना होगा और उसकी शुरुआत पार्टी में होने वाले निर्णयों के लागू होने के साथ देखनी चाहिए। केवल भाजपा को धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण कर वोट हासिल करने के आरोप लगाने मात्र से ही पार्टी के नेता बच नहीं सकते हैं। विकास के नाम पर वोट नहीं मिलने और ध्रुवीकरण से वोट बंटने का हवाला देकर जिम्मेदार नेता अपना पल्ला झाड़ते हैं तो आलाकमान को भी इस बात को सोचना होगा। कांग्रेस आलाकमान को भी निर्णय को लेने की शक्ति पैदा करनी होगी।
भाजपा को बनाएं ‘टीचर’
कहते हैं किसी के पास कोई अच्छी चीज हो तो उसे सीखने से गुरेज नहीं करना चाहिए और राजनीतिक रूप से वर्तमान में कांग्रेस को भी भाजपा से सीख लेते हुए अपना टीचर मान लेना चाहिए। तीन राज्यों में सत्ता में आने के बाद भी सरकार का चेहरा कौन होगा। इसको लेकर आम जन नेता सब यहां तक की मीडिया भी प्रयास ही लगता रहा लेकिन दावा कोई नहीं कर पाया। छत्तीसगढ़ में चेहरा सामने आने के बाद भी राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी कुछ ऐसा ही है। भाजपा नेतृत्व ने जिस तरह से जनता में विश्वास पैदा किया है उसके बाद पार्टी के नेताओं की भी विरोध की हिम्मत नहीं हो रही है क्योंकि उन्हें भी पता है कि बिना पार्टी के अस्तित्व पर संकट तय है। शुरुआत जनता का विश्वास जीतने से हुई और इस पूरे प्रकरण में भी भाजपा आलाकमान ने यह मैसेज दे दिया कि पार्टी में लीकेज नहीं है और निर्णय होने से पहले कोई दावा नहीं कर सकता। यहां तक की निर्णय होने के बाद भी बगावत और विरोध के स्वर भी शायद ही देखने को मिले। कांग्रेस में ऐसा संभव नहीं है और पार्टी की मजबूती के लिए एक बार कांग्रेस के आलकमान को भी कुछ कठोर निर्णय करने पड़ेंगे और कड़े संदेश भी देने पड़ेंगे। जब तक जनता में पार्टी के अनुशासित होने का विश्वास पैदा नहीं होगा तब तक दूसरी सारी बातें फिजूल है।

























